अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ विवाद : एक व्यापारिक टकराव की कहानी।
पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक व्यापार जगत में सबसे बड़ी हलचल अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण हुई है। यह टकराव केवल दो देशों के बीच का मामला नहीं रहा, बल्कि इसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। इस विवाद की जड़ है — टैरिफ, यानी आयात शुल्क।
आईए जानते हैं क्या होता है टैरिफ ?
टैरिफ एक प्रकार का कर है जो एक देश दूसरे देश से आने वाले सामान पर लगाता है। इसका मकसद आमतौर पर घरेलू उद्योग की रक्षा करना और आयात को महंगा बनाकर संतुलन स्थापित करना होता है।

चीन पर अमेरिकी टैरिफ़ के 125% किए जाने के बाद दोनों देशों के बीच बड़े पैमाने पर ट्रेड वॉर छिड़ने की आशंका तेज़ हो गई है. चीन पर पहले ही 20% का टैरिफ़ लगा हुआ था. पिछले हफ़्ते ही राष्ट्रपति ट्रंप ने अतिरिक्त 34% टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी. यह 9 अप्रैल को लागू होना था लेकिन इसके चंद घंटे पहले ट्रंप ने इसमें 50% टैरिफ़ और बढ़ाने की घोषणा कर दी।
चीन ने इसके जवाब में बुधवार को अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ़ को 50% बढ़ाते हुए 84% कर दिया. इसके बाद बुधवार को अचानक ट्रंप ने चीन पर टैरिफ़ को 125% करने का एलान कर दिया. और बाकी देशों को 90 दिन की छूट देते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ़ घटाकर एक समान 10 फ़ीसदी कर दिया. चीन का कहना है कि अमेरिका की ‘ज़बरदस्ती’ के आगे झुकने की बजाय वह ‘आख़िर दम तक लड़ना पसंद करेगा.’अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर छिड़ चुकी है। अमेरिका भले सुपरपावर है, लेकिन चीन से उलझकर वह ज्यादा नुकसान में रहेगा। चेन्नई के फाइनेंशियल प्लानर डी. मुथुकृष्णन ने वैश्विक बाजारों में गिरावट और बढ़ते टैरिफ के बीच गंभीर चेतावनी दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि भले ही यह अजीब लगे। लेकिन, अमेरिका को चीन की जितनी जरूरत है, उससे ज्यादा चीन को अमेरिका की जरूरत नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि अगर चीन को एक आंख का नुकसान होता है तो अमेरिका अपनी दोनों आंखें खो देगा। दुनिया का एक बड़ा हिस्सा भी आंशिक रूप से अंधा हो जाएगा। यह चेतावनी अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते व्यापार युद्ध के बीच आई है।

कैसे शुरू हुआ अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध?
2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह आरोप लगाया कि चीन व्यापार में अनुचित तरीके अपना रहा है। इसके अंतर्गत बौद्धिक संपदा की चोरी, जबरन तकनीकी हस्तांतरण और अमेरिका के व्यापार घाटे को मुख्य कारण बताया गया। इसी के जवाब में अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले अरबों डॉलर के सामान पर टैरिफ लगा दिया।
अमेरिका ने लगभग $360 अरब मूल्य के चीनी सामानों पर टैरिफ लगाए।
चीन ने भी अमेरिका से आने वाले उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाया, जिसमें कृषि और ऑटोमोबाइल उत्पाद प्रमुख थे।व्यापारिक तनाव ने दोनों देशों की कंपनियों, किसानों, और उपभोक्ताओं को प्रभावित किया।
इससे उत्पन्न समस्याएं –
1. उपभोक्ताओं पर बोझ :
टैरिफ के कारण वस्तुएँ महँगी हुईं, जिससे आम जनता की जेब पर असर पड़ा।
2. कृषि क्षेत्र की मार :
चीन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों (जैसे सोयाबीन) पर टैरिफ लगाया, जिससे अमेरिका के किसान संकट में आ गए।
3. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं :
बहुत सी मल्टीनेशनल कंपनियाँ दोनों देशों पर निर्भर थीं। टैरिफ से उत्पादन और आपूर्ति में देरी हुई।
4. वैश्विक बाजार में अनिश्चितता :
निवेशकों का भरोसा कम हुआ और शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव आया।
5. तकनीकी तनाव :
अमेरिका ने चीनी तकनीकी कंपनियों जैसे Huawei पर प्रतिबंध लगाए, जिससे टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक ‘डिजिटल दीवार’ खड़ी हो गई।
निष्कर्ष :
अमेरिका-चीन टैरिफ विवाद ने यह दिखाया कि जब दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ टकराती हैं, तो उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। यह केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। आज भी टैरिफ की समस्या पूरी तरह हल नहीं हुई है, और इसके दीर्घकालिक परिणाम भविष्य के वैश्विक व्यापार को प्रभावित करते रहेंगे।