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भारत ने पाकिस्तान के साथ साल 1960 में हुए सिंधु जल समझौते को रद्द कर दिया है। कश्मीर के पहलगाम में क्रूर आतंकी हमले की प्रतिक्रिया के तौर पर यह कदम उठाया गया है

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार (22 अप्रैल) को पर्यटकों पर हुए आतंकी हमलों के बाद केंद्र सरकार ने पड़ोसी देश पाकिस्तान के खिलाफ बहुत ही सख्त कदम उठाते हुए सिंधु जल समझौता रोकने का फैसला किया है। बुधवार शाम प्रधानमंत्री निवास पर बुलाई गई कैबिनेट मामलों की सुरक्षा समिति (CCS) की बैठक में यह फैसला लिया गया। इसके अलावा सरकार ने भारत स्थित पाकिस्तानी दूतावास को भी बंद करने और किसी भी पाकिस्तानी को भारतीय वीजा नहीं देने का फैसला किया है। CCS की बैठक में अटारी बॉर्डर को भी तत्काल प्रभाव से बंद करने का फैसला किया गया है।

 

क्या है सिंधु जल समझौता?

सिंधु प्रणाली में मुख्‍यतः सिंधु, झेलम, चिनाब,रावी, ब्यास और सतलज नदियाँ शामिल हैं। इन नदियों के बहाव वाले क्षेत्र (Basin) को प्रमुखतः भारत और पाकिस्‍तान साझा करते हैं। इसका एक बहुत छोटा हिस्‍सा चीन और अफगानिस्‍तान को भी मिला हुआ है।

 

1947 में आज़ादी मिलने और देश विभाजन के बाद अन्य कई मुद्दों की तरह भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के मुद्दे को लेकर भी विवाद शुरू हो गया।

जब इस मुद्दे का कोई हल नज़र नहीं आया तो 1949 में एक अमेरिकी विशेषज्ञ डेविड लिलियेन्थल ने इस समस्या को राजनीतिक के बजाय तकनीकी तथा व्यापारिक स्तर पर सुलझाने की सलाह दी।

उन्होंने दोनों देशों को राय दी कि वे इस मामले में विश्व बैंक से मदद भी ले सकते हैं। सितंबर 1951 में विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करना स्वीकार कर लिया।

इसके बाद सालों चली बातचीत के बाद 19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ। इसे ही 1960 की सिंधु जल संधि कहते हैं।

इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने रावलिपिंडी में दस्तखत किये थे।

12 जनवरी, 1961 से संधि की शर्तें लागू कर दी गई थीं। संधि के तहत 6 नदियों के पानी का बँटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं।

3 पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलज) के पानी पर भारत को पूरा हक दिया गया।

शेष 3 पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के पानी के बहाव को बाधारहित पाकिस्तान को देना तय हुआ।

भारत और पाकिस्तान के बीच बहने वाली सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल बंटवारे के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को एक समझौता हुआ था। इसे ही सिंधु जल समझौता कहा जाता है। यह समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था और इसका उद्देश्य सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल का दोनों देशों के बीच बंटवारा करना था।

समझौते के तहत भारत सिंधु नदी प्रणाली के पानी का केवल 20% ही इस्तेमाल कर सकता है। बाकी 80% पानी पाकिस्तान को देता है। सिंधु पाकिस्तान की लाइफलाइन कही जाती है।

क्या होगा पाकिस्तान पर इसका प्रभाव?

इस समझौते के रोकने से भारत सिंधु नदी का जल प्रवाह पाकिस्तान को रोक देगा, जिससे पाकिस्तान बूंद-बूंद को तरस सकता है। पाकिस्तान के पंजाब सूबे को इससे सबसे ज्यादा लाभ मिलता रहा है। सिंधु नदी अरब सागर तक पाकिस्तान के कई राज्यों से होकर बहती है। इस समझौते के रुकने से सबसे ज्यादा असर पाकिस्तान की खेतीबारी पर पड़ेगा। वहां के खेत सूखे पड़ जाएंगे और फसल उत्पादन ठप हो जाएगा। करीब 21 करोड़ से ज्यादा की पाकिस्तानी आबादी की जल जरूरतें भी इसी सिंधु जल प्रणाली पर निर्भर है। यानी इसके रुकने से पीने के पानी का भी संकट हो जाएगा।

भूख और प्यास दोनों से तड़पेंगे पाकिस्तानी?

करीब 17 लाख एकड़ जमीन, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है, पानी की कमी से वीरान हो जा सकती है। इससे पाकिस्तान में भयंकर भुखमरी की नौबत आ सकती है। पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट झेल रहा है और अन्न संकट की वजह से भुखमरी की मार झेल रहा है। अब भारत के ऐक्शन से उसकी कमर टूट सकती है। यानी मोदी सरकार के इस ऐक्शन से पाकिस्तान की बड़ी आबादी भूख और प्यास दोनों से तड़प सकती है।

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